दस-बारह रोज और बीत गए। दोपहर का समय था। बाबूजी खाना खा रहे थे। मैं मुन्नू के पाँवों में पीनस की पैजनियाँ बाँध रहा था। एक औरत घूँघट निकाले हुए आई और आँगन में खड़ी हो गई। उसके वस्त्र फटे हुए और मैले थे, पर गोरी सुंदर औरत थी। उसने मुझसे पूछा, ‘‘भैया, बहूजी.
Premchand Ki Lokpriya Kahaniyan (Hindi Edition)
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दस-बारह रोज और बीत गए। दोपहर का समय था। बाबूजी खाना खा रहे थे। मैं मुन्नू के पाँवों में पीनस की पैजनियाँ बाँध रहा था। एक औरत घूँघट निकाले हुए आई और आँगन में खड़ी हो गई। उसके वस्]]त्र फटे हुए और मैले थे, पर गोरी सुंदर औरत थी। उ...